गुरु का महत्व

सभी मनुष्यों के पास बुद्धि होती है, किंतु उसका सही इस्तेमाल करना बहुत कम लोगों को आता है। जिन लोगों के पास बुद्धि का सही प्रयोग करने की क्षमता है, वे इस क्षमता से ज्ञान को पूर्ण रूप से जानकर, ज्ञान के मूल स्रोत रूपी ईशस्थिति का अनुभव कर लेते हैं। इस तरह ईशस्थिति का अनुभ किये लोग उसी में डूब जाते हैं। और कुछ लोग अपने द्वारा प्राप्त अनुभव दूसरों को भी मिलना चाहिए' इस महान लक्ष्य के साथ, जिन लोगों का ज्ञान कच्चा रहता है, उनके ज्ञान को परिपक्व बनाते हुए उन्हें उन्नत स्थिति में ले जाते हैं।


श्रीरामकृष्ण परमहंस इस तथ्य को स्पष्ट रूप से समझाते हैं: एक ऐसी ऊँची जगह पर, जहाँ कोई आदमी झाँककर नहीं देख सकता, एक विशाल बरतन रखा हुआ है। उससे सटाकर एक सीढ़ी रखी गई है। कुछ लोग जिन्हें सीढ़ी पर चढ़ना आता है, उस पर चढ़कर झाँककर देखते हैं कि उस बरतन में क्या चीज रखी हुई है। उसके अंदर है उमड़ता-उमगता मधुर मधुरिम आनन्दमय खीर। कुछ लोग उसमें कूदकर निमग्न हो जाते हैं। उसका आस्वादन करने के बाद कुछ लोग, 'अपने अनुभूत आनंद दूसरे लोग भी पाएँ' इस सद्भावना के साथ नीचे आकर, दूसरों को बताकर, चढ़ने में अशक्त लोगों को सहारा चढ़वाते हैं और पात्र में रखे अमृत-तुल्य खीर का आस्वाद करने देते हैं। ऐसे ही महानुभाव पूजनीय 'गुरुजन' हैं।

पीढ़ी-दर-पीढ़ी आ रहे महाज्ञानियों में अन्यतम हैं पूज्यपाद योगीराज वेदाद्रि महर्षि।